Nabi aur rasool kise kahte hain
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_नबी किसे कहा जाता है ?_*
नबी का लफ्ज़ या तो "नबावह" से बना है जिसका मतलब होता है बुलन्दी मर्तबा और या यह लफ्ज़ बना है "नबा" (बा-साकिन) से जिस का मतलब होता है खबर देना ज़ाहिर करना। और या यह लफ्ज़ बना है "नबाह्" से जिसका मतलब होता है मख़फ़ी आवाज़।
पहले मायने के लिहाज़ से नबी को "नबी" इसलिये कहते है कि तमाम मख्लूक़ से बुलन्द मर्तबा रखता है। दूसरे मायने के लिहाज़ से कि वह हक़ बात को ज़ाहिर करता है और गैबी खबरें देता है और तीसरे मायने के लिहाज़ से वह वही (क़ुरआन) को सुनता है जो आवाज़ दूसरों पर मख़फ़ी होती है।
इसी तरह एक एहतेमाल यह भी है कि यह लफ्ज़ असल में नबीया हो तो उस वक़्त मायने होता है रास्ता, इस सूरत में नबी को नबी कहने की वजह यह होगी कि अल्लाह और मख्लूक़ के दरमियान वास्ता होता है जिस तरह रास्ता मन्ज़िले मक़सूद तक पहुचने का ज़रिया होता है इसी तरह अम्बियाए किराम عليه السلام रब का कुर्ब हासिल करने और मन्ज़िले मुराद को पाने का ज़रिया और वास्ता होते है।
यह तो लफ्ज़ "नबी" के लगवी मायने थे जो सब के सब नबी में बेयक वक़्त जमा होते है। इस्तेलाही तौर पर नबी की तारीफ़ यह है कि : "बनिए आदम से हो, यानी इंसान हो, मुज़ककर हो, आज़ाद हो, उसकी तरफ वही आए और लोगों तक अल्लाह के अहकाम पहुचाए, नेक लोगों को जन्नत की बशारत दे और कुफ्फार को जहन्नम से डराये और मिज्ज़ात के ज़रिये उसकी नबुव्वत तो ताईद हासिल होती है।
रसूल का मायना पैगाम पहुचाने वाला, भेजा हुआ। लेकिन इस्तेलाह में रसूल उसे कहते है जिसे किताब भी अता हो या पहली शरीअत पर अमल करना खत्म हो चूका हो तो फिर से पहली शरीअत की तजदीद का हुक्म दिया जाये। हर रसूल नबी ज़रूर होता है लेकिन हर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं।
तमाम रसूलो और अम्बियाए किराम को मिज्ज़ात से तक़्वीयत पहुचाई जाती है अब देखना यह है मिजिज़ा किसे कहते है ?
बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 24
*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_नबी किसे कहा जाता है ?_*
नबी का लफ्ज़ या तो "नबावह" से बना है जिसका मतलब होता है बुलन्दी मर्तबा और या यह लफ्ज़ बना है "नबा" (बा-साकिन) से जिस का मतलब होता है खबर देना ज़ाहिर करना। और या यह लफ्ज़ बना है "नबाह्" से जिसका मतलब होता है मख़फ़ी आवाज़।
पहले मायने के लिहाज़ से नबी को "नबी" इसलिये कहते है कि तमाम मख्लूक़ से बुलन्द मर्तबा रखता है। दूसरे मायने के लिहाज़ से कि वह हक़ बात को ज़ाहिर करता है और गैबी खबरें देता है और तीसरे मायने के लिहाज़ से वह वही (क़ुरआन) को सुनता है जो आवाज़ दूसरों पर मख़फ़ी होती है।
इसी तरह एक एहतेमाल यह भी है कि यह लफ्ज़ असल में नबीया हो तो उस वक़्त मायने होता है रास्ता, इस सूरत में नबी को नबी कहने की वजह यह होगी कि अल्लाह और मख्लूक़ के दरमियान वास्ता होता है जिस तरह रास्ता मन्ज़िले मक़सूद तक पहुचने का ज़रिया होता है इसी तरह अम्बियाए किराम عليه السلام रब का कुर्ब हासिल करने और मन्ज़िले मुराद को पाने का ज़रिया और वास्ता होते है।
यह तो लफ्ज़ "नबी" के लगवी मायने थे जो सब के सब नबी में बेयक वक़्त जमा होते है। इस्तेलाही तौर पर नबी की तारीफ़ यह है कि : "बनिए आदम से हो, यानी इंसान हो, मुज़ककर हो, आज़ाद हो, उसकी तरफ वही आए और लोगों तक अल्लाह के अहकाम पहुचाए, नेक लोगों को जन्नत की बशारत दे और कुफ्फार को जहन्नम से डराये और मिज्ज़ात के ज़रिये उसकी नबुव्वत तो ताईद हासिल होती है।
रसूल का मायना पैगाम पहुचाने वाला, भेजा हुआ। लेकिन इस्तेलाह में रसूल उसे कहते है जिसे किताब भी अता हो या पहली शरीअत पर अमल करना खत्म हो चूका हो तो फिर से पहली शरीअत की तजदीद का हुक्म दिया जाये। हर रसूल नबी ज़रूर होता है लेकिन हर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं।
तमाम रसूलो और अम्बियाए किराम को मिज्ज़ात से तक़्वीयत पहुचाई जाती है अब देखना यह है मिजिज़ा किसे कहते है ?
बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 24
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