Azan ki shuruaat kabse hui
Azmat Ansari:
☆☆अजान की सुरूवात☆☆
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मक्का मे बहुत कम मुसलमान हुवे थे । और मुसलमानो के जान पे ख़तरा रहता था । जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिये एक दूसरे को एक दूसरे से बुला लिया करते थे लेकिन नमाज़ के लिये बुलाने का कोई आगाज़ करने का तरीका नही था । बाद मे हुज़ूर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का से मदीना हिजरत करके तशरीफ़ ले गये और वहाँ मस्जिदे कूफ़ा के बाद नमाज़ के लिये मस्जिदे नब्वी तामीर की गयी । 2 साल के बाद मुसलमानों की तादाद बढ़ने लगी और जमाअत की नमाज़ के लिये "' अस सलातुल जामिया " ....(नमाज़ के लिये सब जमा है ! ) की जोर से पुकार किया जाता था। और जो सुनता था वो जमाअत की नमाज़ मे शामिल हो जाता था। लेकिन अब मुसलमानों को नमाज़ के लिये बुलाने का कोई तरीका ढूंढना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और सहाबियों को ज़रूरी लगने रहा था। और हुज़ूर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने तमाम सहाबियों के साथ इस्लाह और मशवरा शुरू किया ।
किसी ने °यहूदियों° की तरह *ब्यूगल* फूंकने की पेशकश की,
किसी ने °ईसाईयों° की तरह चर्च मे बुलाने के लिये *घन्टा* बजाने की पेशकश की,
किसीने आतिश परस्तों की तरह *मोमबत्ती जला* के नमाज़ के लिये बुलाने की पेशकश की।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को किसी की भी पेशकश दिलकश नही लगी और इत्मीनान नही हुवा और बेश्तर अच्छी सिफारिश के लिये राह देखने का सोचा , इस उमीद पे के इस पे अल्लाह के तरफ से कोई अच्छा सुजाव या तरीका का कोई हुक्म आ जाये और उसके लिये इंतज़ार करने लगे।
कुछ दिनों के बीतने के बाद एक दिन अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद सहाबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास आये और कहने लगे अल्लाह के नबी ! मैंने कल एक खूबसूरत ख्वाब देखा " मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पूछा कैसा ख्वाब देखा ?
अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद ने जवाब दिया " मैंने हरे लिबास मे एक शख्स को ख्वाब में देखा जो मुझे अज़ान के अलफ़ाज़ सीखा रहा था और फिर उसने मशोरा दिया कि इसी अल्फ़ाज़ों से लोगों को नमाज़ों के लिये बुलाया करो " और बाद मे उन्होंने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अज़ान के वो अलफ़ाज़ सुनाये जो उन्होंने ख्वाब मे सीखा था ।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अज़ान के अल्फ़ाज़ का अंदाज़ और मतलब बहुत खुबसूरत लगा और अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद के ख्वाब को सच माना और उसको तस्लीम कर लिया । और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद को *अज़ान के ये अलफ़ाज़* बिलाल को सीखाने को कहा।
इस के बाद नमाज़ का वक़्त होते ही बिलाल खड़े हुवे और नमाज़ के लिये अज़ान दी। बिलाल की अज़ान की आवाज़ मदीना शरीफ मे गूंज उठी और लोग सुनके मस्जिदे नब्वी की तरफ तेज़ रफ्तारसे चलते दौड़ते आने लगे । उमर इब्ने खत्ताब भी आ गये और उन्होंने हज़रात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से कहा ! मुझे भी ये ही अज़ान एक फ़रिश्ते ने कल रात ख्वाब मे आके सिखाया था " और ये सुनने के बाद हुज़ूर को इत्मीनान हुवा और इस अज़ान को नमाज़ के लिये बुलाने और पुकारने के लिये हंमेशा के लिये "मुहर" (confirmed) लगा दिया उसे final कर दिया ।
Reference
[बुखारी शरीफ book 1 volume 11 हदीस नम्बर 577, 578, 579, 580,]
☆☆अजान की सुरूवात☆☆
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मक्का मे बहुत कम मुसलमान हुवे थे । और मुसलमानो के जान पे ख़तरा रहता था । जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिये एक दूसरे को एक दूसरे से बुला लिया करते थे लेकिन नमाज़ के लिये बुलाने का कोई आगाज़ करने का तरीका नही था । बाद मे हुज़ूर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम मक्का से मदीना हिजरत करके तशरीफ़ ले गये और वहाँ मस्जिदे कूफ़ा के बाद नमाज़ के लिये मस्जिदे नब्वी तामीर की गयी । 2 साल के बाद मुसलमानों की तादाद बढ़ने लगी और जमाअत की नमाज़ के लिये "' अस सलातुल जामिया " ....(नमाज़ के लिये सब जमा है ! ) की जोर से पुकार किया जाता था। और जो सुनता था वो जमाअत की नमाज़ मे शामिल हो जाता था। लेकिन अब मुसलमानों को नमाज़ के लिये बुलाने का कोई तरीका ढूंढना मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और सहाबियों को ज़रूरी लगने रहा था। और हुज़ूर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने तमाम सहाबियों के साथ इस्लाह और मशवरा शुरू किया ।
किसी ने °यहूदियों° की तरह *ब्यूगल* फूंकने की पेशकश की,
किसी ने °ईसाईयों° की तरह चर्च मे बुलाने के लिये *घन्टा* बजाने की पेशकश की,
किसीने आतिश परस्तों की तरह *मोमबत्ती जला* के नमाज़ के लिये बुलाने की पेशकश की।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को किसी की भी पेशकश दिलकश नही लगी और इत्मीनान नही हुवा और बेश्तर अच्छी सिफारिश के लिये राह देखने का सोचा , इस उमीद पे के इस पे अल्लाह के तरफ से कोई अच्छा सुजाव या तरीका का कोई हुक्म आ जाये और उसके लिये इंतज़ार करने लगे।
कुछ दिनों के बीतने के बाद एक दिन अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद सहाबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के पास आये और कहने लगे अल्लाह के नबी ! मैंने कल एक खूबसूरत ख्वाब देखा " मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने पूछा कैसा ख्वाब देखा ?
अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद ने जवाब दिया " मैंने हरे लिबास मे एक शख्स को ख्वाब में देखा जो मुझे अज़ान के अलफ़ाज़ सीखा रहा था और फिर उसने मशोरा दिया कि इसी अल्फ़ाज़ों से लोगों को नमाज़ों के लिये बुलाया करो " और बाद मे उन्होंने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अज़ान के वो अलफ़ाज़ सुनाये जो उन्होंने ख्वाब मे सीखा था ।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को अज़ान के अल्फ़ाज़ का अंदाज़ और मतलब बहुत खुबसूरत लगा और अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद के ख्वाब को सच माना और उसको तस्लीम कर लिया । और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद को *अज़ान के ये अलफ़ाज़* बिलाल को सीखाने को कहा।
इस के बाद नमाज़ का वक़्त होते ही बिलाल खड़े हुवे और नमाज़ के लिये अज़ान दी। बिलाल की अज़ान की आवाज़ मदीना शरीफ मे गूंज उठी और लोग सुनके मस्जिदे नब्वी की तरफ तेज़ रफ्तारसे चलते दौड़ते आने लगे । उमर इब्ने खत्ताब भी आ गये और उन्होंने हज़रात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से कहा ! मुझे भी ये ही अज़ान एक फ़रिश्ते ने कल रात ख्वाब मे आके सिखाया था " और ये सुनने के बाद हुज़ूर को इत्मीनान हुवा और इस अज़ान को नमाज़ के लिये बुलाने और पुकारने के लिये हंमेशा के लिये "मुहर" (confirmed) लगा दिया उसे final कर दिया ।
Reference
[बुखारी शरीफ book 1 volume 11 हदीस नम्बर 577, 578, 579, 580,]
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