Huzoor sallallahu alaihi wasallam ke bare me
रसूल अल्लाह ﷺ का यह बयान हर एक इंसान को पढना और शेयर करना चाहिए…
हमारे नबी ﷺ का नाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम है, जो पीर के दिन, सुबह सादिक़ के वक़्त 12 रबीउल अव्वल, बमुताबिक़ 20 अप्रैल 571 ईसवी, मुल्क अरब के शहर मक्का शरीफ़ में पैदा हुए. आपके वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह और वालिदा का नाम हज़रत आमना है और दादा का नाम अब्दुलमुत्तलिब है और नाना का नाम वहब है.
अल्लाह तआला ने आपको मेराज अता फ़रमाई यानी अर्श पर बुलवाया, जन्नत, दोज़ख़ अर्श और कुर्सी वग़ैरह की सैर करवाई, अपना दीदार आँखों से दिखाया, अपना कलाम सुनाया, यह सब कुछ रात के थोड़े से वक़्त में हुआ.
कब्र में हर एक से आपके बारे में सवाल किया जाता है.
क़यामत के दिन हश्र के मैदान में सबसे पहले आप ही शफ़ाअत करेंगे. सारी मखलूक़ अल्लाह की रज़ा चाहती है और,अल्लाह हमारे प्यारे नबी-ए-करीम ﷺ रज़ा चाहता है और आप पर दुरुदों सलाम भेजता है. अल्लाह ने अपने नाम के साँथ आपका नाम रखा, कलमा, अज़ान, नमाज़, क़ुरान में, बल्कि हर जगह अल्लाह के नाम के साँथ हमारे प्यारे नबी -ए-करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का नाम मौजूद है.और क़यामत तक रहेगा
अल्लाह तआला ने हुज़ूर की बेत को अपनी बेत, आपकी इज्जत को अपनी इज्जत, हुज़ूर की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी, आपकी मोहब्बत को अपनी मोहब्बत, आपकी नाराजगी को अपनी नाराजगी क़रार दिया. हमारे प्यारे नबी तमाम नबियों से अफ़ज़ल हैं, बल्कि खुदा के बाद आपका ही मरतबा है. इसी पर उम्मत का इजमा है.
आपकी मोहब्बत के बग़ैर कोई मुसलमान नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी मोहब्बत ईमान की शर्त है. आपके क़ौल व फ़ेल अमल व हालत को हिकारत की नज़र से देखना या किसी सुन्नत को हल्का या हक़ीर जानना कुफ्र है.
हज़रत आजबिर बिन सुमरा फरमाते हैं कि मैंने चाँद की चौदहवीं रात की रोशनी में प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम को देखा, आप एक सुर्ख़ यमनी जोड़ा पहने हुए थे. मैं कभी आप की तरफ देखता और कभी चाँद की तरफ. यकीनन मेरे नजदीक आप चौदहवीं रात के चाँद से ज्यादा हसीन नजर आते थे.
हसीन तो क्या आफताब रिसालात के सामने चौदहवीं रात का चाँद फीका था. हजरत बरार बिन आजीब से पूछा गया क्या रसूल्लल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का चेहरा तलवार के मानिन्द था. उन्होंने कहा, नहीं, बल्कि चाँद के मानिन्द था [शमायले तीरमीजी शरीफ सफा 2]
हमारे नबी ﷺ का नाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम है, जो पीर के दिन, सुबह सादिक़ के वक़्त 12 रबीउल अव्वल, बमुताबिक़ 20 अप्रैल 571 ईसवी, मुल्क अरब के शहर मक्का शरीफ़ में पैदा हुए. आपके वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह और वालिदा का नाम हज़रत आमना है और दादा का नाम अब्दुलमुत्तलिब है और नाना का नाम वहब है.
अल्लाह तआला ने आपको मेराज अता फ़रमाई यानी अर्श पर बुलवाया, जन्नत, दोज़ख़ अर्श और कुर्सी वग़ैरह की सैर करवाई, अपना दीदार आँखों से दिखाया, अपना कलाम सुनाया, यह सब कुछ रात के थोड़े से वक़्त में हुआ.
कब्र में हर एक से आपके बारे में सवाल किया जाता है.
क़यामत के दिन हश्र के मैदान में सबसे पहले आप ही शफ़ाअत करेंगे. सारी मखलूक़ अल्लाह की रज़ा चाहती है और,अल्लाह हमारे प्यारे नबी-ए-करीम ﷺ रज़ा चाहता है और आप पर दुरुदों सलाम भेजता है. अल्लाह ने अपने नाम के साँथ आपका नाम रखा, कलमा, अज़ान, नमाज़, क़ुरान में, बल्कि हर जगह अल्लाह के नाम के साँथ हमारे प्यारे नबी -ए-करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का नाम मौजूद है.और क़यामत तक रहेगा
अल्लाह तआला ने हुज़ूर की बेत को अपनी बेत, आपकी इज्जत को अपनी इज्जत, हुज़ूर की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी, आपकी मोहब्बत को अपनी मोहब्बत, आपकी नाराजगी को अपनी नाराजगी क़रार दिया. हमारे प्यारे नबी तमाम नबियों से अफ़ज़ल हैं, बल्कि खुदा के बाद आपका ही मरतबा है. इसी पर उम्मत का इजमा है.
आपकी मोहब्बत के बग़ैर कोई मुसलमान नहीं हो सकता, क्योंकि आपकी मोहब्बत ईमान की शर्त है. आपके क़ौल व फ़ेल अमल व हालत को हिकारत की नज़र से देखना या किसी सुन्नत को हल्का या हक़ीर जानना कुफ्र है.
हज़रत आजबिर बिन सुमरा फरमाते हैं कि मैंने चाँद की चौदहवीं रात की रोशनी में प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम को देखा, आप एक सुर्ख़ यमनी जोड़ा पहने हुए थे. मैं कभी आप की तरफ देखता और कभी चाँद की तरफ. यकीनन मेरे नजदीक आप चौदहवीं रात के चाँद से ज्यादा हसीन नजर आते थे.
हसीन तो क्या आफताब रिसालात के सामने चौदहवीं रात का चाँद फीका था. हजरत बरार बिन आजीब से पूछा गया क्या रसूल्लल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम का चेहरा तलवार के मानिन्द था. उन्होंने कहा, नहीं, बल्कि चाँद के मानिन्द था [शमायले तीरमीजी शरीफ सफा 2]
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