نماز جنازہ کا طریقہ مع مسائل

Azmat Ansari:
*नमाज़े जनाज़ा का बयान*

*सवाल* नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ है या वाजिब!
*जवाब* नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ किफा़या है यानी अगर एक शख़्स ने पढ़ली तो सब छुटकारा पा गए और अगर खबर हो जाने के बाद किसी ने ना पढ़ी तो सब गुनाहगार हुए !
*सवाल* जनाज़ा में कितनी चीजें फ़र्ज़ हैं !
*जवाब* दो चीजें फ़र्ज़ हैं चार बार "अल्लाहु अकबर" कहना, कि़याम यानी खड़ा होना !
*सवाल* नमाज़े जनाज़ा में कितनी चीजें सुन्नत है !
*जवाब* नमाज़े जनाज़ा में तीन चीजें सुन्नते मुअक्दा हैं! अल्लाह तआला की सना, हुजूर अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर दुरूद, और मैइत के लिए दुआ !
*सवाल* नमाजे़ जनाज़ा पढ़ने का तरीक़ा क्या है !
*जवाब* पहले नियत करें! नियत की मैने नमाज़े जनाज़ा की चार तकवीरों के साथ अल्लाह तआला के लिए दुआ इस मैइत के लिए (मुक़तदी इतना और कहे, पीछे इस इमाम के) मुंह मेंरा तरफ़ काबा शरीफ के फिर कानों तक दोनों हाथ ठाकर अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ वापस लाएं और नाफ़ के नीचे बांधले फिर सना पढ़े "सुब्हान क  अल्लाहुम्म व बिहमदि  क व तबारकस्मु क व त्आला जाद्दु क वजल्ल सनाउ क ब लाइलाह गै़रु क " फिर बग़ैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और दुरूद इब्राहीमी पढ़े जो पांच वक्त की नमाज़ में पढ़ी जाती है! फिर बगै़र हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहे और बालिग़ का जनाज़ा हो तो यह दुआ पढ़े! "अल्लाहुम्ममग्फि़र लिहैयिना व मैयितिना व  शहिदिना व ग़ाइबिना सगीरिना व कबिरिना व ज क रिना उनसाना अल्लाहुम्म मन अहयैतहु मिन्ना
फ़अह यही अलल्इस्लामि ब मन तवफ्फ़ैतहू मिन्ना फ़तवफ्फ़हू अलल्ईमान" इसके बाद चौथी तकबीर कहें फिर बगै़र कोई दुआ पढ़े हाथ खेलकर सलाम फेरदे और नाबालिग़ बच्चे का जनाज़ा हो तो यह दुआ पढ़ी जाए "अल्लाहुम्मज्अल्हु लना फ़रतौ वज्अल्हुलना अज्रौ व जख्रौ वज्अल्हु लना शफिऔ व मुशफ्फ़आ" और अगर नाबालिग़ लड़की का जनाज़ा हो तो यह दुआ पढ़ें! "अल्लाहुम्मज्अल्हा लना फ़रतौ वज्अल्हा लना अज्रौं व जुख्रौं वज्अल्हा लना शा फिअतौं व मुशफ्फअत"!
*सवाल* अस्र फज्र की नमाज़ के बाद जनाज़ा पढ़ना कैसा है !
*जवाब* जाइज़ है और यह जो अवाम में मशहूर है कि नहीं जाइज़ है ग़लत है !
*सवाल* क्या सूरज निकलने, डूबने और ज़वाल के वक़्त नमाज़े जनाज़ा पढ़ना मकरूह है !
*जवाब* जनाज़ा अगर उन्हीं भक्त़ों में लाया गया तो नमाज़ उन्ही भक़्तों में पढ़े कोई कराहत नहीं कराहत तो उस सूरत में है कि पहले से तैयार मौजूद है और देर की यहां तक कि वक़्ते कराहत आ गया!  (बहारे शरीयत आलमगीरी)

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